लोनी के संग्राम से गरमाई प्रदेश की सियासत, पुराने जख्म हुए हरे

लोनी से स्थानीय भाजपा विधायक नंद किशोर गुर्जर व उनके प्रतिनिधि समेत दर्जन भर से अधिक पर रिपोर्ट दर्ज होने के मामले में राजनीतिक सियासत गरमा गई है। मंगलवार को विधानसभा में मामला उठा तो विपक्षी व सत्ता दल के विधायक भी उनके साथ खड़े हो गए। विधायक पहले से आरोप लगा रहे हैैं कि उनके खिलाफ साजिश रची जा रही है। संगठन महामंत्री का नाम लेकर पूर्व भाजपा जिलाध्यक्ष व पूर्व नगर पालिका चेयरमैन लोनी ने एफआईआर दर्ज कराई गई। अपनी ही पार्टी के लोगों के खिलाफ विधायक के बगावत भरे तेवर और विधान सभा में हंगामे के बीच पार्टी नेतृत्व असहज जरूर हुआ होगा।
एफआईआर दर्ज होने के बाद से विधायक अपनी ही पार्टी के लोगों पर आरोप लगा रहे हैं कि उनके खिलाफ साजिश रची जा रही है। विधायक के रुख को पार्टी लाइन के खिलाफ मानते हुए प्रदेश अध्यक्ष के निर्देश पर उनसे जवाब तलब भी किया जा चुका है, लेकिन उसके बाद भी विधायक मामले को लेकर हमलावर हैं। इस पूरे मामले में स्थानीय स्तर पर भले ही पार्टी का एक वर्ग और कुछ स्थानीय विधायक अपने आप को अलग रख कर चल रहे हो लेकिन साफ संकेत मिल रहे हैं कि पार्टी का एक बड़ा खेमा उनके साथ खड़ा है। इसी का नतीजा है कि मंगलवार को विधानसभा में उन्हीं की पार्टी के विधायक बड़ी संख्या में साथ खड़े हो गए। पार्टी से जुड़े सूत्र बताते हैं कि लोनी का संग्राम भले ही नया है, लेकिन उसकी पटकथा तीन वर्ष पुरानी है। मामला वर्ष 2017 के विधान सभा चुनावों से भी जुुड़ा है। जब पार्टी व संगठन के कुछ लोग नहीं चाहते थे कि उन्हें टिकट हो, लेकिन टिकट फाइनल होते वक्त पार्टी के तीन बड़े नेताओं ने नंद किशोर गुर्जर का नाम सबसे पहले रखकर टिकट देनी की पैरवी कर दी। तीनों शीर्ष नेता पैरवी कर रहे थे तो अन्य नेता टिकट काट नहीं सके। टिकट फाइनल होने के बाद लोनी विधायक भाजपा की लहर में जीत गए लेकिन स्थानीय नेताओं के साथ उनकी खींचतान जारी रही या यू कहें की बढ़ती चली गई। खासकर जो उन्हें उम्मीदवार बनते नहीं देखना चाहते थे। सूत्रों का कहना है कि चुनाव के बाद नंदकिशोर गुर्जर प्रदेश के इकलौते ऐसे विधायक थे, जिन्होंने पार्टी संगठन से जुड़े एक बड़े नेता पर चुनाव में खिलाफत करने का आरोप लगाकर शीर्ष नेतृत्व को पत्र लिख दिया। नंदकिशोर गुर्जर सार्वजनिक तौर पर पत्र लिखकर अपने ही नेताओं पर चुनाव हराने का आरोप भी लगाते रहे हैं।
पंचायत चुनाव भी बना विवाद की बड़ी जड़
2017 में भाजपा के सत्ता में आने के बाद जिला पंचायत अध्यक्ष की कुर्सी को लेकर खींचतान शुरू हो गई। भाजपा के एक नेता अपनी पत्नी को अध्यक्ष बनाने का गणित बैठा रहे थे तभी विधायक नंदकिशोर गुर्जर ने पवन मावी से हाथ मिलाया। सूत्र बताते हैं कि लोनी विधायक ने ही पवन मावी की पत्नी लक्ष्मी मावी को जिला पंचायत अध्यक्ष बनाने का फार्मूला तैयार किया। मुरादनगर से जुड़े एक जाट नेता से हाथ मिलाया जो विधायक से खिलाफत के चलते नंदकिशोर के साथ चले गए। इनके साथ दो जिला पंचायत सदस्य थे। उधर, नदकिशोर गुर्जर ने डासना -मसूरी से जुड़े एक मुस्लिम नेता को भी अपने साथ खड़ा कर लिया, जिसके पीछे तीन जिला पंचायत सदस्य थे। इस तरह से संख्या बल के हिसाब से पार्टी का राजनीति में नंदकिशोर खेमे के पास ज्यादा जिला पंचायत सदस्य थे। ऐसे में आसानी से लक्ष्मी मावी अध्यक्ष बन गई लेकिन उसके बाद से राजनीतिक तौर पर दांव पेंच का दौर शुरू हो गया।
एफआईआर होते ही हरे हुए जख्म
27 नवंबर को खाद्य सुरक्षा अधिकारी आशुतोष सिंह ने लोनी विधायक, उनके प्रतिनिधि समेत दर्जन भर के खिलाफ अपने कार्यालय में बुलाकर मारपीट करने आरोप लगाकर पुलिस को तहरीर दी। पुलिस ने 28 नवंबर को मामले में रिपोर्ट दर्ज कर ली, जिस पर विधायक ने अपने विशेषाधिकार का हनन बताते हुए संगठन महामंत्री का नाम लेकर अपनी ही पार्टी के नेताओं द्वारा एफआईआर दर्ज कराने का आरोप लगाया। विधायक ने कहा कि खाद्य सुरक्षा अधिकारी के खिलाफ रिश्वत लेने के साक्ष्य है लेकिन पुलिस रिपोर्ट दर्ज नहीं कर रही है। पुलिस ने कुछ ही दिन बाद विधायक प्रतिनिधि को गिरफ्तार भी कर लिया, जिन्हें कोर्ट से जमानत मिल चुकी है। उधर, कोर्ट खाद्य सुरक्षा अधिकारी के खिलाफ भी रिपोर्ट दर्ज करने के निर्देश दे चुकी है। इस पूरे घटनाक्रम के बाद लोनी से जुड़े सारे विवादों को जख्म हरे हो गए और विधायक ने अपनी ही पार्टी के लोगों पर साजिश करने का आरोप मढ़ दिया।